मिस्र में नाइल नदी के किनारे ये दो मूर्तियां बनी हुई हैं। स्थानीय लोग इन्हें क्लॉसी ऑफ मैमनॉन कहते हैं। फिर भी समझा ये जाता है कि इनका मैमनॉन्स से कोई वास्ता नहीं है। पत्थर की ये विशाल मूर्तियां 3400 साल से ज्यादा पुरानी हैं। आज के लक्झर शहर में ये स्थित हैं। फैरा एमनहोटैप तृतीय की ये मूर्तियां हैं। घुटने पर हाथ रखकर बैठे इस फैरो के पास उसकी मां और पत्नी की छोटी मूर्तियां भी हैं।
प्राचीन मिस्र के सबसे बड़े मंदिर के सामने ये मूर्तियां बनवाई गई थीं। आज यहां पर सिर्फ ये दो मूर्तियां ही रह गई हैं। मंदिर के अवशेष भी बाकी नहीं रह गए हैं। इसके खत्म होने के भी कई कारण बताए जाते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि नाइल नदी में बाढ़ आने से मंदिर खत्म हो गया होगा। करीब 13 फीट के प्लेटफॉर्म पर 60 फीट ऊंची ये मूर्तियां बनी हैं। दोनों के बीच 50 फीट की दूरी है। प्रत्येक का वजन 700 टन होगा।
जिस पत्थर से ये बनी हैं, वो भी यहां नहीं पाया जाता। ऐसा पत्थर यहां से 675 किमी दूर काइरो में मिलता है। फिर उस दौर में ये लोग इतने भारी पत्थर कैसे यहां लाए होंगे, ये भी एक पहेली बना हुआ है। अगर नाइल के रास्ते इसे लाए तो भी कितनी बड़ी नाव बनानी पड़ी होगी। रिसर्च के बाद भी इन सवालों के जवाब तलाशे जाने बाकी हैं।
राज है गहरा
मिस्र के लक्झर शहर में नाइल नदी के किनारे खड़ी पत्थर की ये दो मूर्तियां किस तरह बनाई गई होंगी ये आज भी रहस्य है।
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