जिस तरह से दुनिया में कोरोना ने आतंक मचाया उससे पुरे दुनिया को प्रकृति की ओर से एक चेतावनी कहा जाये तो बिलकुल सही होगा मानव जाति ने जिस तरह से इस प्रकृति का दूरउपयोग किया है उससे आने वाले समय में प्रलय आ जाये इसमें कोई शक की गुंजाईश नहीं है , लेकिन मानव जाति महत्वपूर्ण और शक्तिशाली बनने की होड़ में विनाश की ओर बढे चले जा रही है,
सुनो !!
ऐ जिव जो मानव प्रजाति है तुम्हारी,
ना ये जहाँ तुम्हारा न ये धरती सिर्फ तुम्हारी ।
तुम्हे घमंड है किस बात का,
जबकि हिस्से में है सिर्फ दो ग़ज्ज जमीं तुम्हारी।
अनंत फैले इस ब्रह्माण्ड में ,
धूल के कण सा है अस्तित्व तुम्हारा।
खुद को इस संसार का भगवान कहना ,
क्या ये नासमझी नहीं है तुम्हारा ।
अपने स्वार्थ में डूबकर, खुद को सीमाओं में घेरकर ,
कहते हो देश महान है तुम्हारा ।
ये जमी है हर जिव का न की सिर्फ तुम्हारी,
संभल जाओ वक़्त रहते, प्रकृति ने दी है चेतावनी ,
वार्ना न तुम बच पाओगे न ये दिखावे की इन्शानियत तुम्हारी।
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