नई दिल्ली.भारत ने अपना सबसे बड़ा रक्षा करार मंगलवार को रूस के साथ किया। यह 29.50 बिलियन डॉलर यानी लगभग 1350 अरब रुपए का है। समझौता पांचवीं पीढ़ी के आधुनिकतम युद्धक विमान (एफजीएफए) के साझा डिजाइन के लिए हुआ है। इस आरंभिक समझौते के मुताबिक भारत को ऐसे 250 विमानों की आपूर्ति 2018 से शुरू होगी। आवश्यकतानुसार विमानों की संख्या 300 तक बढ़ सकती है।
मंगलवार को आरंभिक करार पर हस्ताक्षर रूसी कंपनी रोसनबरो एक्सपोर्ट के ए इसायकिन व एचएएल के चेयरमैन अशोक नायक ने किए। लगभग डेढ़ साल में डिजाइन को अंतिम रूप दिया जाएगा। तब विमान के विकास एवं उत्पादन के लिए अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर होंगे।
खूबियां व विशेषताएं
यह अपनी श्रेणी के अमेरिकी एफ-32 राप्टर व निर्माणाधीन एफ-35 लाइटनिंग-2 को टक्कर देने वाला है। यह राडार की पकड़ से बाहर (स्टील्थ तकनीक से लैस) रहने में सक्षम होगा। यह सुपरसोनिक गति, जबरदस्त घात क्षमता से भी लैस होगा। मिसाइलों के जरिए हवा से हवा, हवा से धरती व हवा से पोत पर मार करने में सक्षम होगा।
विशेष टू-सीटर संस्करण:
भारतीय वायु सेना के लिए विशेष रूप से विमान का दो सीटों वाला संस्करण भी तैयार किया जाएगा। रूसी वायु सेना केवल एक सीट वाले विमान का प्रयोग करेगी।
साझा विकास व उत्पादन करार के चलते दोनों देशों की सहमति से अपनी जरूरतें पूरी होने के बाद इसकी बिक्री अन्य मित्र देशों को भी की जा सकेगी। यह इस साझा परियोजना का पहला समझौता है। समय के साथ-साथ करारों की नई श्रृंखला भी जारी रहेगी।
हमारे 70 फीसदी रक्षा उपकरण रूसी:
भारत व रूस के सामरिक संबंध शीतयुद्ध के समय से जारी हैं और भारत के 70 फीसदी रक्षा उपकरण रूसी मूल के हैं। हाल के वर्षो में साजो-सामान व उपकरणों की आपूर्ति में देरी, लागत में वृद्धि, कलपुर्जो व रखरखाव की कमी से दोनों देशों के बीच मतभेद भी हुए हैं। एडमिरल गोर्शकोव की लागत में वृद्धि व देरी के चलते दोनों देशों के संबंधों में कुछ समय के लिए शिथिलता भी रही।
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