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Wednesday, January 19, 2011

हिममानव का अस्तित्व


एक तरफ उसे सदियों से भारत में हिममानव, नेपाल में यति, अमेरिका में बिगफुट, ब्राजील में मपिंगुरे, आस्ट्रेलिया में योवेई, इंडोनेशिया में साजारंग गीगी जैसे नामों से पुकारा जाता है, और दूसरी तरफ उसके अस्तित्व पर ही प्रश्न चिह्न लगाया जाता है। जी हाँ, हम बात कर रहे हैं कि बर्फीले पहाड़ों पर देखे और पहचाने गए विशालकाय वानर शरीर वाले हिममानव की। इनके अस्तित्व को लेकर जारी बहस के बीच वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी हकीकत का पता लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जुटाए गए सबूतों की फोरेंसिक जाँच की जा रही है।




इस बीच जाने-अनजाने यह अनजान ‘प्रजाति’ आज मशहूर हो गई है। इन्हें किताबों, फिल्मों, बच्चों की कामिक्स में तो स्थान मिल ही गया है, इस पर वीडियो गेम्स भी बनाए जा रहे हैं। 

पहली बार चर्चा में - हिममानव या यति का सबसे पहला उल्लेख एक पर्वतारोही बी.एच. होजसन ने किया था। अपने हिमालय अभियान के अनुभवों में उन्होंने लिखा था कि सन् 1832 में उत्तरी नेपाल के पहाड़ी इलाके में उनके गाइड ने लंबे बालों वाले एक विशालकाय प्राणी को देखने की बात कही। होजसन ने साफ लिखा है कि उन्होंने कुछ नहीं देखा, लेकिन इस घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने अनजान प्राणी को यति नाम दिया। इसके बाद यति के देखे जाने और पदचिह्नों की पहचान किए जाने का लंबा इतिहास रहा है। कई पर्वतारोहियों ने अपनी किताबों में इसका उल्लेख किया है। हिमालय क्षेत्र ही नहीं, दुनिया के बाकी हिस्सों से भी ऐसी खबरें आती रहीं। हालांकि कोई भी अपनी बात साबित करने के लिए पुख्ता सबूत नहीं दे सका है। 

कैसा है हिममानव? : सन् 1925 में पेशेवर फोटोग्राफर तथा रायल जिओग्राफिकल सोसायटी के सदस्य एम.ए. टोमबाजी ने लिखा कि उन्होंने जेमू ग्लेशियर (कंगचनजंघा पर्वत माला) के पास 15,000 फुट की ऊँचाई पर बालों से ढ़का एक विशालकाय प्राणी देखा है। टोमबाजी ने स्पष्ट रूप लिखा है कि उन्होंने उसे लगभग 200 मीटर दूरी से देखा। वे एक मिनट तक उसे निहारते रहे। उसकी शारीरिक बनावट पूरी तरह से इंसानी थी, लेकिन शरीर पर बहुत अधिक मात्रा में बाल थे। उसके तन पर कपड़े जैसी कोई चीज नहीं थी। 

दिसंबर 2007 में अमेरिका के एक टीवी शो प्रस्तुतकर्ता जोशुआ गेट्स और उनकी टीम ने भी यति के स्पष्ट पदचिह्न देखने का दावा किया। उन्होंने बताया कि प्रत्येक पदचिह्न की लंबाई 33 से.मी. थी।

बालों की जाँच- 19 मार्च 1954 को अंग्रेजी अखबार ‘डेली मेल’ में एक लेख प्रकाशित हुआ, जिसमें इस मसले पर वैज्ञानिक नजरिए से प्रकाश डाला गया था। असल में वहाँ के प्रोफेसर फ्रेडरिक वुड जोन्स ने यति के बालों के माइक्रोफोटोग्राफ का परीक्षण किया था। उनकी तुलना भालू और दूसरे पहाड़ी जानवरों के बालों से की गई, लेकिन इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सका कि आखिर ये बाल किसके हैं।
सन् 1957 में यति के मल की जाँच भी गई, लेकिन यह साफ नहीं हो सका कि अगर यह अवशिष्ट पदार्थ यति का नहीं है, तो किस जंतु का है? हाल ही में बीबीसी ने यति के बाल एकत्रित किए गए जाने और जाँच के लिए भेजे जाने की खबर प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में भी पता नहीं चल पाया है कि ये बाल किस पहाड़ी प्राणी के हैं। अब डीएनए विश्लषण किया जा रहा है।

खोपड़ी मिली! सन् 1960 में एवरेस्ट के विजेता सर एडमंड हिलेरी को कथित तौर पर हिमालय में यति की खोपड़ी मिली। उन्होंने इसे जाँच के लिए पश्चिमी देशों में भेजा। उस समय यह बताया गया था कि खोपड़ी बर्फीले पहाड़ों पर पाए जाने वाले बकरी जैसे किसी जानवर की है। वैसे बड़ी तादाद में लोगों ने इस रिपोर्ट पर विश्वास नहीं किया। 

हिममानव की चीख- सन् 1970 में एक पर्वतारोहण अभियान पर हिमालय पर ब्रिटिश पर्वतारोही डान व्हिलान्स ने दावा किया कि उन्होंने यति के चिल्लाने की आवाज सुनी है। डान के मुताबिक, उन्होंने कुछ आवाजें सुनीं, तो उनके शेरपा गाइड ने बताया कि यति चिल्ला रहा है।
सांस्कृतिक प्रतीक यतिः नेपाल और तिब्बत में हिममानव को यति कहा जाता है। यति आज सांस्कृतिक प्रतीक बन गया है। अबूझ पहेली बनी सृष्टि की इस रचना पर कई किताबें लिखी गई हैं, वीडियो तथा फिल्में बनाई जा चुकी हैं। 

इस आमतौर पर एक घृणित शोमैन के रूप में दिखाया गया है। ‘द एबोमिनेबल शोमैन’, ‘डाक्टर हू’, ‘बग्स बनी कार्टून’, ‘देट्स शो घोस्ट’, ‘द माइटी बुश’, ‘काल आफ ए यति’ जैसे टीवी शो में यति को एक शैतान के रूप दिखाया गया है। बालीवुड फिल्म ‘अजूबा कुदरत का’ में भी यति को दिखाया गया है। यह ऐसी लड़की की कहानी है, जो यति को दिल दे बैठती है। विदेशों में भी कई फिल्में बन चुकी हैं। 


कुछ तो है- बहरहाल, अभी तक दर्जनों लोगों ने यति देखने के दावे किए हैं, लेकिन कोई भी पुख्ता सबूत पेश नहीं कर पाया है और विज्ञान ऐसे किसी सबूत के बिना यति के अस्तित्व पर मुहर नहीं लगा सकता है। इसको लेकर वैज्ञानिकों में भी मतभेद है। कुछ कह रहे हैं कि प्रमाण इतने नहीं हैं कि यति का होना घोषित कर दिया जाए। फिर 
भी विज्ञान के जानकारों का एक वर्ग ऐसा है, जो कह रहा है कि कुछ तो है। 

अमेरिका के पोकाटेलो में इदाहो विश्वविद्यालय में प्रोफेसर जेफ मेलड्रम का कहना है कि मैंने इस संबंध में मौजूदा सभी वैज्ञानिक प्रमाणों का अध्ययन किया है और इस नतीजे पर पहुँचा हूँ कि इस सृष्टि में कोई प्राणी ऐसा जरूर है, जिसकी पहचान होना बाकी है।

रामायण से जुड़ी कहानी- नेपाल में यति को राक्षस भी कहा जाता है। कुछ गंथों के मुताबिक कुछ नेपाली और हिमालय की तराई के इलाकों में राम और सीता के बारे में प्रचलित लोक कविताओं और गीतों में भी कई जगह यति का उल्लेख किया गया है। 

यति...आम बात है- इसी तरह यति या हिममानव और मानव की मुलाकातों के कई किस्से हिमालय पर्वतों के अनुभवी बूढ़े सुनाया करते हैं। भूटान में कुछ बुजुर्ग ऐसे हैं, जिनके लिए हिममानव कोई आश्चर्य की बात नहीं है। उनके मुताबित, उनके जमाने में हिममानव दिखना सामान्य बात थी। 77 साल के सोनम दोरजी का कहना है कि यति का इतिहास सदियों पुराना है और वे आज भी मौजूद हैं। 

बहरहाल यह तो तय है कि आज तकनीक जितनी भी विकसित हो जाए पर प्रकृति के कुछ रहस्यों से पर्दा उठना अभी बाकी है।


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